मीडिया वालों को आदत हो गयी है बेचारे नेताओं को परेशान करने की. अभी कल अपने यूपी के पीडब्ल्यूडी वाले मंत्री शिवपाल जादो का तीन तेरह कर दिया. बेचारे की गलती इतनी थी कि अफसरों की मीटिंग में बोल दिया कि चोरी करो लेकिन मेहनत कर के. और हाँ डकैती मत करो. अब इसमें क्या गलत है? सही तो बोले. हमारे सारे शास्त्र कहते हैं कि जो भी काम करो मेहनत से करो, मन लगाकर करो. तो चोरी भी मेहनत से करनी चाहिए. यह तो इतनी सरल बात है कि लालू यादव तक समझ जाएँ. हमारी मूढ़ मीडिया को समझ न आई.
वैसे तो पीडब्ल्यूडी खुद ही एक मेहनती डिपार्टमेंट है. उनको बताने की जरुरत ही नहीं थी. कहाँ पर सड़क में सीमेंट की जगह मिट्टी वाली रेत से काम निकल लेना है, कहाँ पर गटर-मेनहोल एकाध महीने खुला छोड़ देने से कुछ नहीं होने वाला है, किस कॉलोनी से कचरा उठाकर किस कॉलोनी में फेंक देना है, किस काम का पब्लिक से कितना लेना है इस सबका उनके पास प्रॉपर बना बनाया सिस्टम है भाई. ऐसा नहीं कि कोई खेल-तमाशा है. हर काम कायदे से है. लेकिन खैर शिवपाल जी मंत्री बने हैं और मंत्री का काम ही है बोलना और अफसरों का सुनना. जनसत्ता ने लिखा कि शिवपाल जी ने जब चोरी पर अपना लौजिकल और प्रैक्टिकल प्वाईट रखा तो अफसर भौंचक रह गए. भौंचक होने वाली बात ही थी.. माना कि शिवपाल जी के सामने चोरी और डकैती जैसे विषयों पर वो कहीं नहीं टिकते लेकिन इतनी बेसिक बातें उन्हें नहीं पता होगी.. ये तो सरासर अंडर एस्टीमेट करना हुआ यूपी के अफसरों को. हो सकता है कि शिवपाल जी का मतलब यह भी हो कि तुम सब सिर्फ चोरी करो डकैती हम मंत्रियों पर छोड़ दो. हम अपनी जिम्मेदारी समझते हैं.
शिवपाल यादव ने अपने बयान में सोशल साइंस के शोधकर्ताओं को एक रिसर्च का एक नया टॉपिक भी दे दिया. चोरी और डकैती को कैसे अलग अलग किया जाये. किस प्वाइंट पर चोरी डकैती बन जाती है यह एक बड़ा जटिल मुद्दा है. ऑक्सफोर्ड और भार्गव डिक्शनरी वालों को भी चोरी और डकैती की डेफिनिशन भी फिर से चेक करनी होगी. कल को कोई डकैती कर ले और बाद में अदालत में भार्गव डिक्शनरी लेकर पहुँच जाए कि नहीं यह तो चोरी थी और वो भी मेहनत से तो फिर जुर्म कैसे हुआ. अब हमारे यूपी-बिहार के नेता लोग बोलते हैं तो ऐसे ही मुंह उठा के कुछ भी नहीं बोल देते. एक-एक सेन्टेन्स से दो चार रिसर्च टॉपिक न निकल आएँ तो फिर वो बयान ही क्या हुआ?
हमारे देश में पहले बयान आता है और उसके बाद सफाई. मेरे हिसाब से तो हर सरकार में अलग एक बयान सफाई मंत्रालय ही होना चाहिए. जिसका काम हो कि किसी नेता ने उलटा-पुल्टा बयान देकर रायता फैला दिया हो तो उसको समेटो. इस मंत्रालय में सिब्बल, अभिषेक सिंघवी जैसों को रखा जाना चाहिए क्योंकि वो रायता अच्छा समेटते हैं. इस मंत्रालय में अफसरों के सेलेक्शन के लिए अलग से आई ए एस टाइप एक्जाम होना चाहिए जिसमें सवाल ऐसे हों कि किसी बयान की सफाई आप कितने टाइप से दे सकते हैं. बयान को वापस लेने के अलग-अलग तरीकों पर विश्लेषण करने को पूछा जाना चाहिए. कठिन प्रश्नों के लिए आडवाणी, मनीष तिवारी, शिवपाल जैसे लोगों का पिछले तीन-चार सालों के बयान देखे जाने चाहियें.
खैर, आगे देखते हैं शिवपाल जी का मामला कैसे सलटता है. फिलहाल तो उनहोंने मीडिया को हड़का दिया है कि मीटिंग के अंदर हुई ऐसी छोटी-छोटी बातों को बाहर नहीं लाना चाहिए था. सही बात है. कोई मर्डर, जनसंहार, अरबों के घोटाले वगैरह की बात हो तो छापो.. ये क्या कि चोरी-डकैती को लेकर पीछे पड़ गए. मीडिया को रिस्पोंसिबल होना माँगता है.
Kajal Kumar says
PWD = Worse Publc Department
Satish says
हाहाहा.. सही बात…
ravikar says
चोरी मेहनतकश करे, पाते अफसर छूट |
करना लीडर सम नहीं, मार्च लूट सी लूट |
मार्च लूट सी लूट, पार्टी का यह सम्बल |
सी एम जाते रूठ, बके चच्चा क्यूँ अल-बल |
करते रहें प्रजेन्ट, आय के कागज़-थ्योरी |
रविकर सौ परसेंट, करें फिर खुल्ली चोरी |
हुई कहानी सब ख़तम, दफ़न जवानी दोस्त |
हड्डी कुत्ते चाटते, सिस्टम खाया गोश्त |
सिस्टम खाया गोश्त, रोस्ट कर कर के नोचा |
बन जाता जब टोस्ट, होस्ट इक अफसर पोचा |
आया न आनंद, वही लंदफंदिया बोला |
करके फ़ाइल बंद, बिना सिग्नेचर डोला ||